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Navratri 2023 Day 2: नवरात्रि के दूसरे दिन इस शुभ मुहूर्त में करें मां ब्रह्मचारिणी की पूजा,

Rama Posted on: 2023-10-16 10:35:00 Viewer: 406 Comments: 0 Country: India City: Delhi

Navratri 2023 Day 2: नवरात्रि के दूसरे दिन इस शुभ मुहूर्त में करें मां ब्रह्मचारिणी की पूजा, Navratri 2023 Day 2: Worship Mother Brahmacharini at this auspicious time on the second day of Navratri,


कार्य होंगे सफल, देखें मुहूर्त, मंत्र और पूजन ​विधि

Navratri 2nd Day Maa Brahmacharini Puja: कल रविवार यानी 15 अक्टूबर से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है. नवरात्रि के पूरे नौ दिन दुर्गा में के 9 स्वरूपों की पूजा विधि-विधान से की जाती है. कल प्रथम दिन मां दुर्गा के शैलपुरी स्वरूप की भक्तों ने धूम धाम से पूजा-आराधना की. कलश स्थापना की गई. आज दूसरे दिन दुर्गा जी के मां ब्रह्मचारिणी स्वरूप की पूजा की जाएगी. मान्यता है कि मां ब्रह्मचारिणी की पूजा-उपासना करने से भक्तों को दोगुना फल प्राप्त होता है. मां के एक हाथ में जप माला, तो दूसरे हाथ में कमंडल सुशोभित होता है. वे सफेद रंग के वस्त्र धारण करती हैं. इन्हें शांति, तप, पवित्रता का प्रतीक माना जाता है. आइए जानते हैं दयालबाग, आगरा के ज्योतिष एवं वास्तु आचार्य प्रमोद कुमार अग्रवाल से आज मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने का शुभ मुहूर्त, पूजा की विधि, मंत्र, नियम और महत्व के बारे में.

मां ब्रह्मचारिणी कौन हैं?
मान्यताओं के अनुसार, माता ब्रह्मचारिणी मां पार्वती का दूसरा रूप हैं, जिनका जन्म राजा हिमालय के घर उनके पुत्री के तौर पर हुआ था. मां ब्रह्मचारिणी ने शंकर जी को अपने पति के रूप में प्राप्त करने के लिए काफी कठिन तपस्या, साधना और जप किए थे.

मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने का शुभ मुहूर्त
ज्योतिष एवं वास्तु आचार्य प्रमोद कुमार अग्रवाल कहते हैं कि मां ब्रह्मचारिणी देवी के पूजन एवं आराधना करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है. आप नवरात्रि के दूसरे दिन देवी ब्रह्मचारिणी की विधि-विधान से पूजा करने वाले हैं तो अमृत काल में सुबह 6 बजकर 27 मिनट से 7 बजकर 52 मिनट तक पूजा कर सकते हैं. वहीं, शुभ काल में सुबह 09:19 से 10:44 बजे तक देवी दुर्गा की पूजा कर सकते हैं. जो लोग शाम को पूजा करते हैं, उनके लिए शुभ और अमृत काल में सांय 03:03 से 05:55 बजे तक मुहूर्त रहेगा.

क्या है मां ब्रह्मचारिणी की पूजा का महत्व?
यदि आप सच्ची श्रद्धा भाव से आज के दिन विधि-विधान से माता के इस स्वरूप की पूजा करते हैं तो आपको अपने महत्वपूर्ण कार्यों और उद्देश्यों में सफलता हासिल हो सकती है. ऐसा इसलिए, क्योंकि मां ब्रह्मचारिणी ने भी कठिन तप और साधना से ही शिव जी को प्राप्त करने के अपने उद्देश्य में सफलता हासिल की थी. आपके अंदर हर कठिन से कठिन घड़ी में डटकर लड़ने की हिम्मत प्राप्त होगी. यदि आपके ऊपर मां ब्रह्मचारिणी की कृपा दृष्टि हो तो आप हर तरह की परिस्थितियों से लड़ने की क्षमता अपने अंदर विकसित कर लेंगे.

इस विधि से करें मां ब्रह्मचारिणी की पूजा
सुबह सवेरे जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं. चूंकि, मां ब्रह्मचारिणी सफेद वस्त्र धारण करती हैं, इसलिए आप भी सफेद वस्त्र पहन सकते हैं. मां दुर्गा की प्रतिमा को पूजा स्थल की सफाई करने के बाद स्थापित करें. मां ब्रह्मचारिणी के स्वरूप को याद करते हुए उन्हें प्रणाम करें. अब पंचामृत से स्नान कराएं. सफेद रंग का वस्त्र चढ़ाएं. उन्हें अक्षत, फल, चमेली या गुड़हल का फूल, रोली, चंदन, सुपारी, पान का पत्ता आदि अर्पित करें. दीपक, अगरबत्ती, धूप जलाएं. चीनी और मिश्री से मां को भोग लगाएं. पूजा के दौरान आप मां ब्रह्मचारिणी के मंत्रों को भी जपते रहें. अंत में कथा पढ़ें और आरती करें.

मां ब्रह्मचारिणी के पूजा मंत्र
ब्रह्मचारयितुम शीलम यस्या सा ब्रह्मचारिणी।
सच्चीदानन्द सुशीला च विश्वरूपा नमोस्तुते।।

दधाना कपाभ्यामक्षमालाकमण्डलू। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।

या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

ह्रीं श्री अम्बिकायै नम:।

मां ब्रह्मचारिणी की पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, मां ब्रह्मचारिणी ने शंकर जी को अपने पति के रूप में पाने के लिए प्रण लिया था. इसके लिए वे कठिन तपस्या से गुजरी थीं. जंगलों में गुफाओं में रहती थीं. वहां कठोर तप और साधना किया. कभी भी अपने मार्ग से विचलित नहीं हुईं. उनके इस रूप को शैलपुत्री कहा गया. उनकी इस तप, त्याग, साधना को देखकर सभी ऋषि-मुनि भी हैरान थे. तपस्या के दौरान मां ने कई नियमों का पालन किया था, शुद्ध और बेहद पवित्र आचरण को अपनाया था. बेलपत्र, शाक पर दिन बिताए थे. वर्षों शिव जी को पाने के लिए कठिन तप, उपवास करने से उनका शरीर अत्यंत कमजोर और दुर्बल हो गया. मां ने कठोर ब्रह्चर्य के नियमों का भी पालन किया. इन्हीं सब कारणों से उन्हें ब्रह्मचारिणी कहा जाने लगा.

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