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डॉ. भीमराव अम्बेडकर के सामाजिक न्याय और आर्थिक विचारों की प्रासंगिकता

Rama Posted on: 2023-12-07 10:54:00 Viewer: 3,205 Comments: 0 Country: India City: Delhi

डॉ. भीमराव अम्बेडकर के सामाजिक न्याय और आर्थिक विचारों की प्रासंगिकता Relevance of social justice and economic ideas of Dr. Bhimrao Ambedkar

 

डॉ. देवेन्द्र विश्वकर्मा
लेखक एवं अर्थशास्त्री
एम.ए. (अर्थशास्त्र, ग्रामीण विकास), एम.बी.ए., एम.एस.डब्ल्यू,
पीएच.डी, एण्ड डी.लिट् इन अर्थशास्त्र
अध्यक्ष- युवा आर्थिक परिषद एवं मध्यप्रदेश मैनेजमेंट एसोसिएशन
ई.सी. मैम्बर- भारत आर्थिक परिषद एवं मध्यप्रदेश प्रभारी
राष्ट्रीय सचिव-सोशल साईंस एण्ड मैनेजमेंट वेलफेयर एसोसिएशन

डॉ. भीमराव अम्बेडकर के सामाजिक न्याय और आर्थिक विचारों की प्रासंगिकता पर आधारित है। स्वतंत्र भारत के संविधान के निर्माता डॉ. भीमराव अम्बेडकर बहु आयामी प्रतिभा के धनि थे। डॉ. अम्बेडकर एक उत्कृष्ट बुद्धिजीवी प्रखण्ड विद्वान सफल राजनीतिज्ञ, कानून विद अर्थशास्त्री और जनप्रिय नायक थे। शोषितों महिलाओं और गरीबों के मसीहा थे तथा सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष के प्रतीक है, डॉ. अम्बेडकर ने सामाजिक आर्थिक और राजनीति न्याय क्षेत्रो में लोकतंत्र की वकालत की। एक मजबूत राष्ट्र के निर्माण में डॉ. अम्बेडकर का योगदान अतुलनीय है, डॉ. अम्बेडकर समस्त समाज को दमन शोषण तथा अन्याय से मुक्त करने के लिए समतामूलक समाज की स्थापना की समता बंधुता और न्याय पर आधारित समाज सबका साथ सबका विकास की अवधारणा को स्वीकार कर स्वतंत्र जीवन के लिए जाना का आह्वान किया। छुआ छुत विषमता तथा अश्पृश्यता का अंत किया। डॉ. अम्बेडकर की सामाजिक न्याय की धरना स्वतंत्रता और गरिमा पर आधारित है। भारतीय संविधान के निर्माता होने के नाते सभी को सामान अधिकारों की गारंटी देता है। वे एक महान अर्थशास्त्री एवं राजनीतिज्ञ होने के कारण भारतीय रुपये के अमुल्यन पर अपने विचार प्रकट किये और उत्पीड़ितों के अधिकारों की रक्षा किये, भारत को वर्ण व्यवस्था के अंतर्गत विभिन्न वर्गों के लोगों को कर्तव्यों का बोध कराया तथा समाज में विशेषाधिकार के अंतर्गत सामाजिक न्याय की व्याख्या दी। डॉ. अम्बेडकर ने शोषितों, श्रमिकों महिलाओं और युवाओं को प्रगतिशील राष्ट्र के निर्माण के लिए संविधान जैसे अनिवार्य दस्तावेज दिए। जिस कारण समाज राष्ट्र विश्व में आज उनके सामाजिक न्याय और आर्थिक विचार प्रासंगिक हो गया है।

आर्थिक विचार - डॉ. अंबेडकर ने आर्थिक एवं सामाजिक असमानता पैदा करने वाले पूंजीवादी व्यवस्था को खत्म करने की पुरजोर वकालत की, सन् 1923 में वे लन्दन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से डीएससी. (अर्थशास्त्र) की डिग्री प्राप्त की, अपने डीएससी. की थीसिस “The Problem of the Rupee – Its origin and its solution” में उन्होंने रुपए के अवमूल्यन की समस्या पर शोध किया, जोकि उस समय के शोधों में सबसे व्यवहारिक तथा महत्वपूर्ण शोध था। बाबा साहब ने 1923 में वित्त आयोग की बात करते हुए कहा कि 5 वर्षों के अंतर पर वित्त आयोग की रिपोर्ट आनी चाहिए। भारत मे रिजर्व बैंक की स्थापना का खाका तैयार करने और प्रस्तुत करने का काम बाबा साहब अंबेडकर ने किया (1925 Hilton Young Commission) इसे रिजर्व बैंक आफ इंडिया ने माना और अपनी स्थापना के 81 साल होने पर बाबा साहब के नाम पर कुछ सिक्के भी जारी किए। डॉ. अंबेडकर ने बड़े उद्योग लगाने की वकालत की, परंतु कृषि को समाज की रीढ़ की हड्डी भी माना।

सामाजिक न्याय - डॉ. अंबेडकर भारतीय अर्थव्यवस्था को एक न्यायसंगत अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित करना चाहते थे, जिसमें समानता हो, गरीबी, बेरोजगारी और महंगाई खत्म हो, लोगों का आर्थिक शोषण न हो तथा सामाजिक न्याय हो, सामान्यतः ऐसा लग सकता है कि डॉ. अंबेडकर ने यदि केवल अर्थशास्त्र को ही अपना कैरियर बनाया होता तो संभवतः वे अपने समय के दुनिया के दस प्रसिद्ध अर्थशास्त्रियों में से एक होते। लेकिन डॉ. अंबेडकर का योगदान किसी भी अर्थशास्त्री से कहीं ज्यादा है, डॉ. अंबेडकर ने अर्थशास्त्र के सिद्धांतों और शोधों का भारतीय समाज के संदर्भ में व्यावहारिक उपयोग किया। शोध का जब तक अनुप्रयोग (एप्लीकेशन) न हो तब तक उसकी सामाजिक उपयोगिता संदिग्ध है, भारतीय समाज व्यवस्था को आमूल बदलकर डॉ. अंबेडकर ने अर्थशास्त्र के उद्देश्यों को वास्तविक अर्थ में साकार किया, उनका यह अविस्मरणीय योगदान उनकी सशक्त सामाजिक-आर्थिक संवेदना और सामाजिक-आर्थिक गहन वैचारिकी का परिणाम हैं।

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