Trending Now

drinking water: खारे पानी को पेयजल में बदलने वाला सौर-आधारित संयंत्र

Rama Posted on: 2023-06-03 13:47:00 Viewer: 457 Comments: 0 Country: India City: Bengaluru

drinking water: खारे पानी को पेयजल में बदलने वाला सौर-आधारित संयंत्र Solar-based plant to convert brackish water into drinking water

 

Solar-based plant to convert brackish water into drinking water: पेयजल संकट की चुनौती गहराती जा रही है। समुद्री जल को शोधित कर उसे पीने योग्य बनाना एक विकल्प हो सकता है। लेकिन खारे पानी को शोधित करने के लिए उपयोग की जाने वाली वर्तमान प्रणालियों में ऊर्जा की अत्यधिक खपत होती है। मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग, भारतीय विज्ञान संस्थान, बैंगलोर के शोधकर्ताओं ने खारे जल को शोधित करने के लिए एक ऊर्जा-कुशल सौर-संचालित संयंत्र तैयार किया है।

जल के अलवणीकरण (Desalination) के लिए आम तौर पर रिवर्स ऑस्मोसिस (आरओ) और थर्मल तकनीक का उपयोग होता है। थर्मल अलवणीकरण प्रणाली, खारे पानी को गर्म करके फिर संघनित वाष्प से ताजा पानी प्राप्त करने की विधि है। लेकिन इसमें वाष्पीकरण के लिए आवश्यक ऊर्जा आमतौर पर बिजली या जीवाश्म ईंधन के दहन से प्राप्त होती है।

सौर आसवन (Solar Still) विधि का उपयोग बड़े जलाशयों में खारे पानी को वाष्पित करने के लिए किया जाता है जिसमें वाष्प एक पारदर्शी छत पर संघनित होता है। किन्तु संघनन के दौरान छत पर पानी की एक पतली परत बन जाती है, जो जलाशय में प्रवेश करने वाली सौर ऊर्जा की मात्रा को बाधित करती है जिससे सिस्टम की दक्षता कम हो जाती है।

भारतीय विज्ञान संस्थान के शोधकर्ताओं द्वारा डिज़ाइन किया गया नया संयंत्र, सौर तापीय ऊर्जा का उपयोग अपने खुरदरे सतह वाले वाष्पीकरण ट्यूब में पानी की एक छोटी मात्रा को वाष्पित करने के लिए करता है। अति सूक्ष्म बनावट-जन्य केपिलरी प्रभाव का उपयोग करते हुए यह संयंत्र पानी को एक छिद्रयुक्त सामग्री की सहायता से स्पंज के समान अवशोषित कर लेता है। पानी की संपूर्ण मात्रा को गर्म करने की झंझट न होने के कारण सिस्टम की दक्षता बढ़ जाती है।

मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग, आईआईएससी में सहायक प्रोफेसर सुष्मिता दास बताती हैं कि आईआईएससी टीम द्वारा डिजाइन की गई इस ऊर्जा-कुशल और लागत प्रभावी विलवणीकरण संयंत्र को ऐसे सुदूर क्षेत्रों में भी आसानी से स्थापित किया जा सकता है जहाँ बिजली की सतत आपूर्ति सुनिश्चित नहीं है।

संघनन के दौरान प्रकोष्ठ की छत पर पानी की परत बनने से रोकने के लिए इस संयंत्र में हाइड्रोफिलिक और सुपरहाइड्रोफिलिक की क्रमिक परत-युक्त एक विशेष कंडेनसर लगाया गया है । हाइड्रोफिलिक सतह पर संघनित पानी की बूंदों को सुपरहाइड्रोफिलिक क्षेत्र अपनी ओर खींच लेता है। इससे हाइड्रोफिलिक सतह संघनन के नए सत्र के लिए पुनः तैयार हो जाती है।

इस अलवणीकरण संयंत्र को डॉ. दास और उनके पीएचडी छात्र नबजीत डेका ने संयुक्त रूप से डिजाइन किया है। संयंत्र में खारे पानी के लिए एक टंकी, एक वाष्पीकरण कक्ष और ताप के क्षरण को बचाने के लिए एक इन्सुलेटिंग कक्ष के भीतर कंडेनसर लगा है। एल्युमीनियम से बने वाष्पीकरण कक्ष की सतह पर सूक्ष्म खांचे खोदे गए हैं। विभिन्न सतहों से गुजरने के दौरान तरल में केपिलरी प्रभाव सुनिश्चित करने के लिए टीम ने खाँचो के आयाम और उनके बीच की दूरी तथा सतह के खुरदरेपन के विभिन्न संयोजनों के साथ अनेक प्रयोग किये हैं।

उल्लेखनीय है कि दुनिया की 18 प्रतिशत से अधिक आबादी लेकिन उसके केवल 4 प्रतिशत जल संसाधन वाला भारत आज दुनिया के सबसे अधिक जल संकट वाले देशों में से एक है।

Also Read

  

Leave Your Comment!









Recent Comments!

No comments found...!


Singrauli Mirror AppSingrauli Mirror AppInstall